विश्व शांतिदूत तथागत भगवान गौतम बुद्ध (Click Here)


Buddha Pournima 2021|Life History of Gautam Buddha|Buddha Info |PRASHEEK Entertainments & Educare

    सुस्वागतम!


विश्व शांतिदूत तथागत भगवान गौतम बुद्ध
  
     २१ वीं सदी के २०२१ वे साल मे आज के इस कोरोना के भयभित और विचित्र माहौल में कुछ अमानवीय कृत्य को देखते हुए फिर एक बार गौतम बुद्ध आपकी बहुत याद आ रही है और आपके करुणामय विचारों की आवश्यकता मानवता को बचाने के लिए बार-बार मेहसूस हो रही है! 


     संपूर्ण साल में 12 पूर्णिमा  आती है, उनमें सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा सारे विश्व में जानी जाती है वह है वैसाखी पूर्णिमा!  मई महीने में आने वाली वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा संबोधकर अखंड विश्व के बुद्ध प्रेमी इस पूर्णिमा को बड़ा पर्व मनाते हैं! क्योंकि इसी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के जीवन में ३ महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थी!  इस वैशाख पूर्णिमा को सिद्धार्थ का जन्म हुआ, उन्हें ज्ञान प्राप्ति होके वह "बुद्ध" भी इसी पूर्णिमा को हुए और इसी पूर्णिमा के दिन उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ!  इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के करीब-करीब 80 देशों के बहुत हो बौद्धों में   बहुत बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है!  इस साल २६ मई को "बुद्ध पूर्णिमा" है,  इस पर्व पर आप सभी मानवतावादी सिपाहियों को हार्दिक-हार्दिक मंगल कामनाएं!  बुद्ध पौर्णिमा के इस पावन अवसर पर आओ, तथागत बुद्ध की जीवनी को संक्षिप्त में  समझने का प्रयास करे!


     क्षत्रिय शाक्य वंश की कपिलवस्तु नगरी का पराक्रमी महाराजा शुद्धोधन था!  उसकी महारानी महामाया गर्भधारणा के बाद जब प्रसूति होने का समय नजदीक आया तो अपने पिता के घर (जो कोलिए वंश के थे) देवदहनगरी जाने निकल पड़ी तो रास्ते में एक  'लुंबिनी' नामक वन आया!  उस वनसे गुजरते - गुजरते राह में ही १ शाल वृक्ष के नीचे उन्होंने एक बालक को जन्म दिया!  वह बालक ही आगे सिद्धार्थ "गौतम बुद्ध" बनकर विश्व में छा गया!  इ. सा. पूर्व ५६३ वे वर्ष में सिद्धार्थ का जन्म हुआ,  मतलब आज २०२१ मई को इस घटना को पूरे २५८४ साल हो गए!  निसर्ग के वातावरण में जन्मे इस बालक सिद्धार्थ के जन्मदिन के ७ दिनों बाद ही उसकी मां महामाया चल बसी!  इस नन्हे जान की देखभाल उसकी मौसी गौतमी (शुद्धोधन राजा की द्वितीय पत्नी) ने की!  ८ वें साल की उम्र में सिद्धार्थ गौतम का विद्याभ्यास चालू हुआ!  १६ वीं साल की उम्र में गौतम का विवाह अति सुंदर राजकुमारी यशोधरा के साथ हुआ!  बाद में उन्हें राहुल नाम का एक पुत्र भी हुआ!  इस तरह सिद्धार्थ गौतम का जीवन ऐश्वर्य और सुख शांति से चल रहा था!  संसारी दुखों से वो अभी पूरी तरह से परिचित नहीं था! सिद्धार्थ गौतम सभी दुखों से दूर रहे इसलिए उसके पिता राजा शुद्धोधन ने विशेष प्रयास किए थे, क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म समारोह के समय एक महा ज्ञानी ऋषी असित मुनि जी ने सिद्धार्थ के भविष्य में "सन्यासी होकर बुद्ध होने" का अथवा एक "महान सम्राट राजा होने" की भविष्यवाणी की थी!  सिद्धार्थ सन्यासी ना बने वह प्रत्येक दुखों से दूर रहे इसीलिए राजा ने अपने पुत्र के लिए भोग - विलास के साधनों से सुसज्जित, गर्मी - बरसात, एवं जाड़े के लिए ३ अलग-अलग आलीशान महल बनवाए थे!  पर सिद्धार्थ इन भौतिक सुखों में घुल ना सका!  सिद्धार्थ का मन बचपन से ही करुणामयी और दया का स्त्रोत था!  किसी का दुखी होना, चाहे वह मनुष्य हो या पशु - पक्षी, सिद्धार्थ से किसी का दुख देखा नहीं जाता था!  सिद्धार्थ की मानवता का परिचय देने वाला सिद्धार्थ और उसके चचेरे भाई देवदत्त के तीर से घायल किए गए हंस के प्राणों की रक्षा करने का उदाहरण सर्वज्ञात है ही!  फिर भी विवाह बंधन से और सारे संसारिक सुख और विलास में होने के बावजूद भी सिद्धार्थ एकांतवास पसंद करते थे!  ऐसे में सिद्धार्थ ने अपने नगर मैं सैर करते वक्त १ बीमार आदमी को, १ बूढ़े आदमी को तथा १ मृतक को और १ सन्यासी को देखकर दुखों का और नजदीक से अनुभव ले ही लिया!


     सिद्धार्थ गौतम को "बुद्ध" बनने के लिए महत्वपूर्ण कारण बन गया "गृह त्याग"!   विवाह के बाद २० वें साल में सिद्धार्थ गौतम ने शाक्य संघ में प्रवेश लिया था!  कुछ सालों बाद रोहिणी नदी के पानी के अधिकारों को लेकर सत्य और कोलियों में वाद - विवाद हुआ!  शाक्य और कोलियों के बीच में रोहिणी नदी बहती थी,  लेकिन शाक्य कोलियों को रोहिणी नदी का पानी देने से इंकार कर रहे थे,  इसका परिणाम - संघर्ष अटल था,  अगर संघर्ष होता - युद्ध होता तो शायद इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार होता और कोलिय मुश्किल से ही बच पाते!  युद्ध नहीं चाहिए, शांति और समानता चाहिए,  कुदरत के पानी पर सबका बराबर होना चाहिए!  इसीलिए इस युद्ध को रोकने के लिए गृहत्याग की सजा सिद्धार्थ गौतम ने स्वीकार कि और उसके तहत २९ साल की उम्र में अपनी सुंदर पत्नी यशोधरा, छोटा प्यारा बेटा राहुल इनको और प्रिय माता पिता एवं सारे ऐश्वर्य - वैभव को छोड़कर उसने प्रवज्जा ग्रहण की और घर छोड़ा! प्रिय सारथी छन्ना और घोड़ा कंठक ने भी उन्हें दुखी मन से अलविदा किया!  समस्या निर्माण होने से दुख होता है,  इस दुख का कारण ढूंढते ढूंढते उन्हें राह में कई ऋषि मुनि मिले!  कुछ साधना का उन्होंने खुद भी कठोर अभ्यास किया! सिद्धार्थ गौतम ने तपस्या भी की - इतनी उग्र तपस्या की,  कि उनकी पीठ और पेट नजदीक लग रहे थे!   शरीर की सारी हड्डियां दिख रही थी, फिर भी उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं हुई!  ऐसी अवस्था में जब सिद्धार्थ गौतम एक झाड़ के नीचे बैठे थे तब अपना व्रत छुड़वाने के लिए वन देवता को खीर अर्पण करने के लिए आई हुई "सुजाता" नामक स्त्री ने गौतम को ध्यान अवस्था में क्षीण शरीर के रूप में देखा और उन्हें वह वनदेवता समझकर खीर से भरा हुआ पात्र उनके सामने रख दिया!  बाद में गौतम ने खीर का सेवन करके अपनी उग्र तपश्चर्या का व्रत तोड़ दिया!  अन्न ग्रहण करके स्फूर्ति महसूस करने के पश्चात गौतम अपने खुद के अब तक के अयशस्वी मार्ग के अनुभव का विचार करने लगे!  और फिर एक बार ज्ञान प्राप्ति का संकल्प कर चिंतन समय की उपजीविका के लिए ४0 दिन चलेगा इतना खाद्य इकट्ठा किया और उन्होंने ४ सप्ताह ध्यान मग्न रह कर धीरे धीरे पूरे ध्यान से ज्ञान प्राप्त कर ली और वह "बुद्ध" हुए!  उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाई दिया की इस विश्व में २ समस्या है - दुनिया में दुख है यह पहली समस्या और दुख को नष्ट कर मानव प्राणी को सुखी कैसे करें? यह दूसरी समस्या!  इन दोनों सवालों का सही हल उसे मिल गया और वह हल मतलब "सम्यक संबोध" (सही ज्ञान प्राप्ति)!  "गया" को जिस पीपल के नीचे सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ उसे इसी कारण से बोधिवृक्षा ऐसा नाम मिला है!  इस तरह अखंड चिंतन करने से अभ्यास करने से सिद्धार्थ गौतम ने ज्ञान प्राप्ति कर ली वे बुद्ध हुए और तृष्णा मुक्त हुए!  पुनर्जन्म के चक्र से छूट गए!  अज्ञान - अंधकार के पार चले गए!  बुद्धत्व प्राप्ति के पश्चात 45 वर्षों तक उन्होंने जागृति कर जनसेवा की और लोगों के आदर्श मार्गदर्शक बन गए!


     बुद्ध ने "बुद्धत्व" (ज्ञान प्राप्ति) के बाद सारनाथ में कौंडिण्य, अश्वजीत, कश्यप, महानाम, भद्रीय इन ५ परिव्राजकों को सर्वप्रथम मध्यम मार्ग का प्रवचन देकर पहला "धम्म चक्र प्रवर्तन" किया!  हिंसा न करना,  चोरी न करना, व्यभिचार न करना,  असत्य ना बोलना,  और मादक नशीली पदार्थ का ग्रहण न करना  यह विशुद्ध के मार्ग अनुसार अच्छे जीवन जिने के ५ तत्व है, जिन्हें "पंचशील" कहते हैं!  इनके द्वारा बुद्ध ने शीलवान, आदर्श - चरित्रवान समाज बनाने का प्रयत्न किया!  पंचशील की तरह "त्रिशरण" पर जोर देकर उन्होंने मानव को स्वावलंबी बनाया!  साथ ही सम्यक दृष्टि,  सम्यक संकल्प,  सम्यक वाचा,  सम्यक व्यायाम,  सम्यक् स्मृति,  सम्यक समाधि, और सम्यक आजीविका इन ८ सदाचार के मार्ग को "आर्य अष्टांगिक मार्ग" कहते हैं!  जिनके द्वारा बुद्ध ने मानवीय मन को योग्य नियंत्रण में रखने की सबसे बड़ी चाबी ही दी है!  जो मन लोभ, आसक्ति, द्वेष निर्माण करता है वही तो दुख का कारण है!  मानवीय मन जैसा ही "अज्ञान" भी दुख का महत्वपूर्ण कारण मानकर बुद्ध ने "चार आर्य सत्य" द्वारा दुख का रूपांतर सुख में करने का एक चिकित्सक वैज्ञानिक तंत्र दिया!  शील मार्ग का पालन करने के लिए नीतिमत्ता को महत्व देकर  शील, दान, उपेक्षा, नैष्कर्म्य, वीर्य, शांति, सत्य, अधिष्ठान, करुणा, और मैत्री से इस पारमिता (यानी पूर्णत्व की अवस्था) मानव को अपने बलबूते पर पालन करने को कहा!  इस तरह समस्त मानव के कल्याण की तत्वों को जन मन में स्पष्ट करके वे कहते हैं:-  अपना जो मार्ग है, जो धम्म है - उसे ईश्वर और आत्मा इसे कोई भी कर्तव्य नहीं है! उसका मरणोत्तर जीवन से कोई भी संबंध नहीं है और इस धम्म का कर्मकांड से भी कोई संबंध नहीं है! "इंसान और इंसान का इंसान के साथ इस दुनिया का रिश्ता" यही धर्म का केंद्र बिंदु है! तथागत आगे कहते हैं कि,  "मैं तो सिर्फ "मार्ग दाता" हूं - उस पर चलना तुम्हारा अपना काम है!"  "मानव' को केंद्र बिंदु मानकर जात - पात,  वर्ण व्यवस्था, स्त्री - पुरुष भेदभाव, ऊंच नीचता इन सबको खत्म करके बुद्ध ने सभी को समानता के पुष्पमाला में पीरों के स्वतंत्र, समता, न्याय और विश्वबंधुत्व की सीख सर्वप्रथम अपने देश से समस्त विश्व की प्राणी मात्र को दी!  उनके भिक्खू संघ में राजा, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्रियां ऐसे सभी लोगों को प्रवेश था!  यश और उनके साथी, राजा बिंबिसार, राजा प्रसनजीत, जीवक, रटृपाल, तथा अनेकों ब्राह्मणों सहित अन्य वर्गों में से उपाली,  सुणीत, सोपाक, सुमंगल, प्रकृति नामक चंडलीका,  नगरवधू आम्रपाली,  कुख्यात डाकू अंगुलिमाल जैसे अनेकों लोगों ने बुद्ध से धम्मदीक्षा ली, जो हर वर्ग से थे - जो हर संप्रदाय के थे और विभिन्न उम्र के थे! तथागत बुद्ध द्वारा धम्मदिक्षित होने वालों में स्वयं उनके पिता क्षत्रिय राजा शुद्धोधन, माता गौतमी, पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल समेत कपिलवस्तु के अन्य शाक्यवंशी थे! ‌उनके अनुयायियों में हजारों भिक्खूओं के साथ लाखों गृहस्थ धम्मानुयाई बने थे!  उस समय मैं ऐसी धार्मिक समानता सच्चे रूप से क्रांतिकारी थी! अज्ञान, विषमता-असमानता, अंधश्रद्धा और कर्मकांड के माहौल में बुद्ध का अहिंसा वाद, सत्य वाद, बंधुत्व वाद,  सबसे मैत्री एक महान क्रांति ही तो थी!  बहुजन हिताय - बहुजन सुखाय के लिए ४५ साल तथागत इस मानवता के धर्म के प्रचार के लिए पूरे भारत भर घूमें और ८0 साल की उम्र में कुशिनारा में इ.स. पूर्व ४८३ में वैशाखी - बुद्ध पूर्णिमा को ही तथागत बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ!

    
     तथागत के जीवित काल में बौद्ध धर्म की व्याप्ति  गंगा के झील तक बढ़ी थी!  पर, आगे - आगे कई सैकड़ों साल बाद पूरे भारत में साथही श्रीलंका,  ब्रह्मदेश,  दक्षिण आशिया एवं जगत के और हिस्सों में इस धम्मका प्रसार हुआ!  बौद्ध महान सम्राट प्रियदर्शी राजा अशोक का इस काम में बहुत बड़ा योगदान रहा है!  फिर आगे आगे सनातन - पुरातन धर्म और बौद्ध धर्म इनमें संघर्ष होकर साथ ही परकीयोंका आक्रमण होकर और राजाश्रय का अभाव, इत्यादि कारणों से १० वे शतक में बौद्ध धर्म का अपने भारत से नामो निशान मिटता चला गया!  लेकिन,  विश्व में बुद्ध की ये क्रांतिकारी,  मानवतावादी, परिवर्तन वादी - विज्ञान वादी विचार फैलते रहने के कारण विश्व के बुद्धानुयायी प्रगति करते रहे!  १८-१९ वें शतक में अपने देश में चातुर्वर्ण्यधिष्टीत समाज रचना फिर से मजबूत हो रही थी!  जाति व्यवस्था का भारतीय समाज जीवन से खात्मा हो इसलिये सारे पुरोगामी विचारशील हिंदू विद्वानों ने विद्रोह किया!  इन  कोशिशोमें से डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जैसे हिंदू अस्पृश्य नेताओं ने फिर एक बार १४ अक्तूबर,१९५६  को इस भारत में बुद्ध को जिंदा किया!  परिवर्तन, प्रज्ञा, शील, करुणा इन पर आधारित धम्म जरूर इंसान को संवारेगा, इसलिए आज -  युद्ध कि नहीं बल्कि बुद्ध की जरूरत है!  क्योंकि, "सब्ब पापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसंपदा, सचित्त परियो दपनं" यही बुद्ध का सभी मानव जाति से कहना है!    अत्त दीप भवं!
    
     
      सारे संसार को जीवन भर "दुख मुक्ति का कारण" बता कर, शांतीमय - सुखमय, कल्याणकारी जीवन जीने की राह देकर, अजरामर हुये इस विश्व वंदनीय,  दीपस्तंभ,  तथागत - गौतम बुद्ध को हमारा कृतज्ञतापूर्वक विनम्र अभिवादन!